अलिफ लैला की प्रेम कहानी-19
मछुवारा यह सुन कर
आश्चर्यचकित और भयभीत हुआ और सोचने लगा कि दुर्भाग्य ही मेरे पीछे पड़ गया है जो मैं
भलाई करके उसके बदले मृत्युदंड पा रहा हूँ। वह गिड़गिड़ाकर दैत्य से बोला, 'भाई, तुम
अपनी प्रतिज्ञा भूल जाओ, मेरे छोटे-छोटे बच्चों पर दया करो। यदि तुम्हारी समझ में मैंने
कोई अपराध किया है तो भी मुझे क्षमा कर दो। क्या तुमने सुना नहीं कि जो दूसरों के अपराध
क्षमा करता है ईश्वर उसके अपराध क्षमा करता है?'
दैत्य ने कहा, 'यह
बातें रहने दे। मैं तुझे मारे बगैर नहीं रहूँगा; तू सिर्फ बता कि किस प्रकार मरना चाहता
है।'
मछुवारा अब बहुत ही
भयभीत हुआ क्योंकि उसने देखा कि दैत्य उसे मारने का हठ नहीं छोड़ रहा है। अपने स्त्री-पुत्रों
की याद करके वह अत्यंत दुखी हुआ। उसने एक बार फिर दैत्य का क्रोध शांत करने का प्रयत्न
किया और उससे अनुनयपूर्वक कहा, 'हे दैत्यराज, मैंने तो तुम्हारे साथ इतनी भलाई की है,
तुम इसके बदले मुझ पर दया भी नहीं कर सकते?' दैत्य बोला, 'इसी भलाई करने के कारण तो
तेरी जान जा रही है।' मछुवारे ने फिर कहा, 'कितने आश्चर्य की बात है कि तुम अपने उपकारकर्ता
के प्राण लेने पर तुले हो। यह मसल मशहूर है कि अगर कोई बुरों के साथ भलाई करता है तो
उसका कुपरिणाम ही उठाता है। यह कहावत तुम्हारे ऊपर पूरी तरह लागू होती है।' दैत्य ने
कहा, 'तुम चाहे जितने सवाल-जवाब करो और चाहे जितनी कहावतें कहो, मैं तो तुम्हारी जान
लेने के प्रण से हटता नहीं।'
मछुवारे ने अंत में
अपनी रक्षा का एक उपाय सोचा। वह दैत्य से बोला, 'अच्छा, अब मैं समझ गया कि तुम्हारे
हाथ से मेरी जान नहीं बच सकती। यदि भगवान की यही इच्छा है तो मैं उसे प्रसन्नतापूर्वक
स्वीकार करता हूँ। लेकिन मैं तुझे उसी पवित्र नाम की - जिसे सुलेमान ने अपनी मुहर में
खुदवाया था - सौगंध देकर कहता हूँ कि जब तक मैं अपने मरने का तरीका सोच कर तय करूँ
तुम मेरे एक प्रश्न का उत्तर दो।' दैत्य इतनी बड़ी सौगंध से निरुपाय हो गया और काँपने-सा
लगा। उसने कहा, 'पूछ, क्या पूछना चाहता है। मैं तेरे प्रश्न का उत्तर दूँगा।'